अंटार्कटिका पहुंचा भारत - भारतीय वैज्ञानिकों की अंटार्कटिक यात्रा
हमें गर्व होना चाहिए कि भारतीय दल भी अंटार्कटिका की खोज में गया |
- सन 1982 से दिसंबर 2001 की अवधि में 20 भारतीय अभियान दल इस बर्फीले महाद्वीप की यात्रा पर गए
- प्रथम भारतीय दल में कुल 21 सदस्य थे
- इस दल के प्रभारी डॉक्टर एस जे कासिम थे
- इनका अभियान 7 खतरनाक समुद्री ऊंचाइयों से होकर गुजरा
- उनका "ध्रुवीय चक्कर" नामक जहाज हेलीकॉप्टरों तथा 2 snow स्कूटरों से सुसज्जित था
- उन्होंने 6 दिसंबर 1981 को गोवा से यात्रा आरंभ की तथा कई रातें बिना सोए समुद्री आपदाओं को झेलते हुए 9 जनवरी 1982 को अंटार्कटिका को स्पर्श किया
- वह वहां 10 दिनों तक रुके | इस अवधि में सदस्यों ने वहां की जलवायु बर्फीले महाद्वीप का मूल स्थान तथा विभाग से इसके अलगाववादी के विषय में प्रयोग किए
- उन्होंने वहां "दक्षिण गंगोत्री" नामक मानवरहित केंद्र की स्थापना की
- अंटार्कटिका महाद्वीप जैसे निर्धन क्षेत्र में हमारे वैज्ञानिकों को तेज तूफानी बर्फीली हवाएं चारों तरफ बर्फ ही बर्फ और Penguin नाम की न उड़ पाने वाली चिड़िया देखने को मिले
- यह 21 फरवरी सन 1982 को भारत लौट आया
- वापस आते समय रास्ते में दल ने एक समुद्री पर्वत को भी खोज लिया | इस समुद्री पर्वत का नाम "इंदिरा" रखा गया
- आठवें दल नए वर्ष 1988-89 में अंटार्कटिका में दक्षिण गंगोत्री से 70 किलोमीटर दूरी पर मानवयुक्त मैत्री केंद्र की स्थापना की
- वर्ष भर में लगभग 25 सदस्य केंद्र में रहे तीसरा शोध केंद्र जो भी हाल में खोला गया का नाम "भारती" रखा गया है
- इन वैज्ञानिक दलों ने अंटार्कटिका महाद्वीप में पर्यावरणीय अध्ययन की अध्ययन ice की चट्टानों के नीचे जीवन के अस्तित्व तथा खनिज संपदा की उपस्थिति की संभावनाओं को खोजने का प्रयास किया और विशेष अनुसंधान शुरू किए हैं ।
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